नीदरलैंड की तरह बिहार में बाढ़ पर लगाम क्यों नहीं लगा सकते?
नीदरलैंड की तरह बिहार में बाढ़ पर लगाम क्यों नहीं लगा सकते?
नकुल तरुण ( दिल्ली में रहने वाले नकुल तरुण डिजास्टर एक्सपर्ट हैं. और पिछले पंद्रह सालों से इस सेक्टर में काम कर रहे हैं)
डिजास्टर मैनेजमेंट एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में सारी जानकारी सरकारी पदाधिकारियों के पास ही है, Monopoly of information ! आम आदमी अभी भी इस विषय के बारे में लगभग कुछ नहीं जानता. हालांकि वो साल दर डिजास्टर की चपेट में आता है. प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष हमारे देश में जान और माल की भारी क्षति होती है. यह सही है कि प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का बस नहीं, लेकिन उचित जानकारी के साथ इसके खतरे को कम किया जा सकता है. Marginalised.in डिजास्टर मैनेजमेंट पर 50 आर्टिकल्स का सीरीज लेकर आ रहा है, ताकि डिजास्टर मैनेजमेंट की पेचीदगियों को आम आदमी आम भाषा में समझ सके. प्रस्तुत है इस कड़ी का तीसरा आर्टिकल:
बिहार के लिए बाढ़ एक वार्षिक आपदा की तरह है. पिछले कुछ वर्षों से बाढ़ ने बिहार में भारी तबाही मचाई है और इसमें कोशी नदी ने विशेष भूमिका निभायी है.
वर्ष 2007, 2008, 2016,2017 में आयी बाढ़ में प्रदेश में जान और माल की भारी क्षति हुई. बिहार में बाढ़ की भयावहता का प्रमुख कारण इसकी भौगोलिक स्थिति और जलवायु है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश अक्सरहां बिहार में बाढ़ के लिए जिम्मेदार होती है. उत्तरी बिहार की लगभग सभी नदियां, गंगा को छोड़ दें तो, नेपाल या तिब्बत से निकलती हैं और उनका ७५% कैचमेंट एरिया प्रदेश से बाहर है. राज्य में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र लगभग 68.80 लाख हेक्टेयर है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73 प्रतिशत और देश में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 17 प्रतिशत है. ये आंकडें अपने आप में बहुत कुछ कहते हैं.
यूं तो मॉनसून किसानों के लिए अच्छी खबर लेकर आता है, क्योंकि बिहार में कृषि का एक बड़ा हिस्सा बारिश पर अभी भी निर्भर है, पर इसका एक दूसरा पहलु भी है, जो स्याह है. मानसूनी बारिश अक्सरहां बिहार के लोगों के माथे पर शिकन लेकर आती है, बिहार के लोग मॉनसून के आते ही बाढ़ की चिंता में डूब जाते हैं, यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि जिस राज्य की 73 प्रतिशत जमीन बाढ़ के खतरे को झेलती हो, वे चिंतिंत कैसे नहीं होंगे. बाढ़ के कारण प्रदेश में लाखों लोगों ने अबतक अपनी जान गंवाई है और अपने जानमाल और संपत्ति को खो दिया है. लाखों लोग ऐसे हैं जो प्रतिवर्ष बाढ़ के कारण अपने घर से विस्थापित हो जाते हैं. लोगों को रोजगार, रोजी रोटी की तलाश में हर साल पंजाब, हरियाणा का रुख करना पड़ता है. हर साल यात्रियों से लदी ट्रेने इसका जीता जागता सबूत हैं. प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान बिहार राज्य झेल रहा है. बाढ़ की वार्षिक विपदा एक बहुत कारण है कि क्यों बिहार एक गरीब राज्य है. विशेषकर कोसी नदी हर वर्ष गरीबी में इजाफा कर रही है, आश्चर्य नहीं कि कोसी को ‘बिहार का शोक’ कहा जाता रहा है.

हम ये कह सकते हैं कि बिहार में बाढ़ सिर्फ भौगोलिक परिस्थितियों के चलती नहीं आती है, बल्कि ये भी है कि हम आपदा या डिजास्टर को रोकने पर विचार नहीं करते, अन्यथा नीदरलैंड जैसे देश से ‘फ्लड मैनेजमेंट’को लेकर कई सक्सेस स्टोरी सामने आयी है. वहां की सक्सेस स्टोरी के बारे में इस सीरीज में बाद में चर्चा की जायेगी. लेकिन इन तमाम बातों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बिहार में बाढ़ की वजह ना केवल भौगोलिक और -जलवायु की स्थितियां जिम्मेदार हैं, बल्कि इसके लिए लिए व्यापक प्रबंधन की कमी भी जिम्मेदार है. बिहार में बाढ़ से निपटने का तरीका मुख्यतः तटबंधों के निर्माण के भरोसे है, पर तटबंध के जो उपाय किये गये हैं, वह अत्यधिक बारिश के दौरान अप्रभावी हो जाते हैं, क्योंकि कम समय में अत्यधिक पानी अपने साथ गाद लेकर आती है, और नदियाँ उथली होती जाती हैं. स्वाभाविक है तटबंध निष्प्रभावी हो जायेंगे. तो ऐसे में जरूरी है सही उपाय और प्रबंधन की जिसकी कमी बिहार में दिखती है. गौरतलब है कि बिहार की नदियों में पानी सिर्फ अपने इलाके से ही नहीं बल्कि दूसरे देशों से भी बढ़ता है, जिसके कारण होता यह है कि कई बार नेपाल द्वारा पानी छोड़ दिये जाने और बांग्लादेश द्वारा फाटक ना खोले जाने के कारण भी बिहार में बाढ़ की स्थिति बन जाती है. ऐसे में जरूरी यह है कि आपस में सहयोग किया जाये और सही मैनेजमेंट से इस स्थिति को बदला जाये, ताकि बिहार के लोग इस वार्षिक आपदा का शिकार अगर हों भी तो नुकसान कम हो और भविष्य में डिजास्टर मैनेजमेंट के जरिये इसे और बेहतर किया जा सके. नयी तकनीक द्वारा पानी का संचयन सबसे बेहतर उपाय है. बाढ़ की आपदा पर अंकुश के लिए सामुदायिक भागीदारी जरूरी है. फिलहाल तो कोशी बेसिन में रहने वाले लोगों को शुभकामनाये जो कि इस वार्षिक आपदा से पुरे हौसले से जूझ रहे हैं, पर सरकारों की जिम्मेवारी तो बनती ही है.
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