समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध की वैधता को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ा
नयी दिल्ली : दो वयस्क समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंध वैध है या नहीं इसपर सुनवाई के दौरान आज केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाये संबंधों से जुड़ी धारा 377 की वैधता के मुद्दे को हम अदालत के विवेक पर छोड़ते हैं. लेकिन केंद्र ने कोर्ट से आग्रह किया कि वह समलैंगिक विवाह , संपत्ति और पैतृक अधिकारों जैसे मुद्दों पर विचार नहीं करे क्योंकि इसके कई प्रतिकूल नतीजे होंगे.
ASG Tushar Mehta tells the five-judge constitution bench of SC that the Centre will leave the matter of constitutionality of Section 377 to be decided by the Court.
— ANI (@ANI) July 11, 2018
वहीं आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह खुद को इस बात पर विचार करने तक सीमित रखेगा कि धारा 377 दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए संबंधों को लेकर असंवैधानिक है या नहीं.
गौरतलब है कि समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कल मंगलवार से सुनवाई शुरू हुई थी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर , न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता और समलैंगिक संबंधों को अपनाने वाले समुदाय के मौलिक अधिकारों पर विचार करेगी.
शीर्ष अदालत ने वर्ष 2013 में अपने फैसले में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त कर दिया था. उच्च न्यायालय ने दो समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा परस्पर सहमति से यौन संबंध स्थापित करने को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया था.
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