रजनीश आनंद की कविताएं -प्रेमिकाओं की किस्मत
रजनीश आनंद पेशे से पत्रकार हैं और वर्तमान में Prabhatkhabar.com से जुड़ी हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए किया है और महिला विषयक मुद्दों पर लगातार लेखन जारी है. आईएम4चेंज मीडिया फेलोशिप व झारखंड मीडिया फेलोशिप की फेलो रहीं हैं. कहानी, कविता और लघुकथा लेखन. कुछ कहानियां और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रेम कविताएं इनकी विशेषता है, तो आज पढ़ें इनकी कुछ कविताएं.संपर्क: rajneeshanand42@gmail.com, 9835933669
प्रेमिकाओं की किस्मत
जिंदगी के खाते में पता नहीं
किस स्याही से लिखी जाती है
प्रेमिकाओं की किस्मत
जिसके हर एक पन्ने पर
दर्ज है अनंत इंतज़ार
प्रेमिकाएं अधीर नहीं होती
वे तो हर दिन बुनती हैं
प्रेम की सलाई पर इंतजार का स्वेटर
लाल, पीला, नीला और बहुरंगी
वाचाल प्रेमिका भी निःशब्द हो जाती है
पर, गाती है मिलन के गीत
बैसाल्ट पत्थर की तरह काले उसके बाल
होने लगे हैं सफेद, लेकिन
इंतजार के दीये की लौ वैसी ही है
जैसी तब थी जब गये थे तुम
उसे कहकर रुको, आता हूं
तब तुम्हारे केश खोलकर लूंगा एक चुंबन
तब से आज तक, प्रेमिकाओं ने
नहीं खोले हैं अपने केश…
प्रेमदीप
आज बधाई दे दो तुम मुझे
क्योंकि बर्फ की भांति तुम्हारा मौन
कायम है मेरे प्रेम निवेदन पर
बावजूद, मेरे मन में जलता है प्रेमदीप
क्या कभी पिघलेगा यह बर्फ
इस बात की चिंता कभी उड़ाती नहीं मेरे होश
हां, मैं अजीब सी सुख में जीती हूं
कि कायम है मेरा प्रेम, मेरे मन में
तुम्हारे मौन पर शोर बनकर.
कुछ लोगों को भ्रम है
मैं शोक में हूं, विरह में जीती हूं
पर मैं जीती हूं तुम्हारे मौन आलिंगन के बीच
खुशी में भी तो अश्रु बहते हैं?
जानना नहीं मुझ क्या परिणाम है
इस प्रेम दीप के प्रज्ज्वलन का
हां, बस एक विश्वास है
यह गढ़ेगा प्रेम प्रकाश
जिससे दीप्त होगा जीवन और मरण
एक प्रेमिका का और उसका इंतजार पथ…
सच!
जो तुम वादा करके नहीं निभा पाये तो क्या
इल्म होते हुए भी हम ना बता पाये तो क्या
तुम्हारी मोहब्बत में अब गरमाहट नहीं तो क्या
हम भी अगर परवाह नहीं करते तुम्हारी तो क्या
यह दुनिया तुम से शुरू होती भी कभी तो क्या
आज तुम पर खत्म नहीं होती तो क्या
कभी खुली आंखों से हम ख्वाब बुनते थे तो क्या
बेनूरी नहीं आंखों में हमारे, ख्वाब तुम्हारे नहीं तो क्या…
अकेली रातें…
अजीब ये जिंंदगी
हर पल करती अचंभित
कब अहा! से आह! मेंं तब्दील
समझने में असमर्थ
कई अकेली रातों में
सुबकती, ढांढस बंधाती
खुद से बतियाती मैं
कई बार लगा यूं
ना , ऐसा ना हो
मर जाऊंंगी मैं लेकिन
जिंदगी ने एक ना सुनी
वो दिन भी दिखाया
बेजान मूरत सी ही सही
पर जीती गयी मैं
हंसती, खिलखिलाती
रोती, रूलाती
बड़े ही जतन से
सहेजा उन पलों को
कमाई जो है जिंंदगी की
भींच रखा है मुट्ठी में
कभी तो भड़केगी चिंनगारी
तब जिंंदगी के चूल्हे पर
खीर ना सही खिचड़ी ही पके मेरे लिए…
स्पीडपोस्ट
जिम्मेदारियों के कई लिफाफे हैं
सबपर ‘ स्पीडपोस्ट ‘ ही लिखा है
जिंंदगी के डाकिये ने बेतरतीब
डिलीवरी दी, और मैंने ली
ऐसे में कहीं दब सा गया है
वो प्रेमपत्र, जिसे लिखा मैंने
बयां करते हाल ए दिल
जिसे हर वक्त छुपाया मैंने
जब भी तुम सामने आये
जी चाहा भींचकर तुम्हें बांहों में
कहूं हर वो बात,जो तुम पढ़़ ना पाये
पर तुम तक पहुंचेगा कभी वो?
यह सवाल मन में है, क्योंकि
लिखा नहीं उसपर ‘स्पीड पोस्ट’
इनकार..
उस दिन जब मैंने
इनकार किया था
तुम्हारे साथ आने से
कुछ भी नहींं दरका था
ना आंंखों से आंसू ही बहे थे
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने कई बार टटोला खुद को
मैं वही हूं ना?
जिसकी एक आवाज पर
मैंने छोड़ी थी पूरी दुनिया
आज उसे छोड़ने पर
क्योंं कुछ नहींं हो रहा मुझे
आइने में देखा खुद को
साफ दिखा कैसे मरा था
रिश्ता मेरा-तुम्हारा, वर्षों पहले
मुझे तो तुमने रिश्ते की
आदत भी ना होने दी थी
बस कुछ भ्रम था जिसे
थामे इतनी दूर चली आयी मैं
हां,भ्रम का शीशा भी टूट चुका था
वर्षों पहले, आज तो बस
टुकड़ों को साफ किया
ताकि लहूलुहान ना हो जाऊं मैं…
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good poem. touched heart.
somu