जानें, आखिर क्यों शेल्टर होम्स में हो रही है गड़बड़ियां, क्या है व्यवस्था की खामियां
बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह में 34 बच्चियों का यौन शोषण किया गया. लगातार अमानवीय व्यवहार किये जाने के कारण बच्चियों कई तरह की बीमारियों की शिकार हो गयी हैं. गृह का संचालक ब्रजेश ठाकुर गिरफ्तार.
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उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में मां विंध्यवासिनी शेल्टर होम से 24 बच्चियों को मुक्त कराया गया, सभी बच्चियां नाबालिग, उनसे देहव्यापार कराया जाता था. मानव तस्करी की घटनाएं भी सामने आयी. संचालिका गिरिजा त्रिपाठी उसके पति और बेटी-बेटियों को मामले में संलिप्त होने के कारण गिरफ्तार किया गया.
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उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में एक शेल्टर होम की संचालिका को गिरफ्तार किया है. निरीक्षण के दौरान यहां सिर्फ दो महिलाएं मिलीं जबकि रजिस्टर में कुल 21 महिलाओं का नाम था. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने बताया कि डोनेशन पाने के लिए फर्जी लोगों का नाम रजिस्टर में अंकित था.
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झारखंड रांची में मिशनरीज अॅाफ चैरिटी संस्था से कई बच्चों को बेचने का मामला सामने आया. जिसमें संस्था की संचालिका सिस्टर कोंसिलिया और अनिमा इंदवार को गिरफ्तार किया गया.
यह कुछ हालिया उदाहरण हैं, जो देश में चल रहे पालना घर, शिशु गृह, नारी निकेतन और बालिका गृह की सच्चाई बयान करते हैं. इसपर महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने बयान दिया कि ऐसे और कई मामले देश में हो सकते हैं. उन्होंने देश में चल रहे शेल्टर होम की स्थिति पर कहा, यह घटनाएं मुझे दुखी कर रही हैं. हमने इनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, पैसा देने के अलावा.
इस बयान का जिक्र यहां करने का आशय यह है कि सरकार भी मान रही है कि शेल्टर होम की स्थिति अच्छी नहीं है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह माना है कि शेल्टर होम चलाने की व्यवस्था में खामी है और उन्होंने पिछले दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अब कोई एनजीओ बिहार में शेल्टर होम संचालित नहीं करेगा और यह जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की होगी. मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में नीतीश कुमार पर विपक्ष ने तीखा हमला किया, जिससे उनकी छवि को नुकसान हो सकता है. यही कारण है कि उन्होंने मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा की है. उन्होंने यह भी कहा कि वे यह चाहते है कि हाईकोर्ट की निगरानी में यह जांच हो.
शेल्टर होम की व्यवस्था में खामी
सवाल यह है कि जांच और सजा से समस्या का समाधान होता दिख नहीं रहा है. कारण यह है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था और शेल्टर होम चलाने की जो व्यवस्था है उसमें ही कई तरह की खामियां हैं. अनाथ बच्चों, ठुकराई गयी महिलाओं और किसी दुर्घटना का शिकार हुए बच्चों के लिए हमारे समाज में कोई शरण स्थल नहीं है, जिसके कारण वे इन शेल्टर होम्स में रहने पर मजबूर होते हैं. चूंकि वे मजबूर होते हैं इसलिए शेल्टर होम के संचालक उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं. उन्हें बच्चे और युवतियां पैसा कमाने का आसान जरिया मालूम होते हैं और बस उनकी लोलुपता जाग उठती है और वे इस तरह के जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं. शेल्टर होम के संचालन के लिए जो व्यवस्था बनायी गयी है, उसका कड़ाई से पालन नहीं होता है, साथ ही जब ऐसे शेल्टर होम्स को मान्यता दी जाती है तो उनके दस्तावेजों का प्रमाणीकरण उचित ढंग से नहीं होता है, जैसा कि देवरिया वाले मामले में कहा गया कि एक के बाद एक शिशु गृह, पालना गृह, नारी निकेतन का लाइसेंस उन्हें दे दिया गया. बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में भी कुछ ऐसे ही तथ्य सामने आये हैं. हरदोई के शेल्टर होम में निरीक्षण के दौरान जो कुछ तथ्य सामने आये वे भी इसी ओर इशारा करते हैं.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से होती है फंडिंग
वर्ष 2001-02 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं और बच्चों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए शेल्टर होम की परिकल्पना की थी. इस परिकल्पना में उनके लिए आश्रय, भोजन, कपड़े, कॉसिलिंग, ट्रेनिंग और स्वास्थ्य सुविधा और कानूनी सहायता की व्यवस्था भी है. इस परिकल्पना का उद्देश्य उपेक्षित और ठुकराई हुई महिलाओं और बच्चों को सम्मानित जीवन देना है. सरकार की योजना अनुसार हर जिले में इस तरह का शेल्टर होम खोलने की योजना थी जिसमें 30 महिलाओं को रखा जा सके.
इन आश्रय गृहों में 18 साल से अधिक की वैसी महिलाओं को रखा जाता है जो –
परित्यक्त महिलाएं जिनके पास घर नहीं होता है.
प्राकृतिक आपदा की शिकार महिलाएं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से बेसहारा हों.
महिला कैदी जो जेल से रिहा होने के बाद बिना परिवार के होती हैं और जिनका कोई सामाजिक और आर्थिक आधार नहीं होता है.
घरेलू हिंसा की शिकार वैसी महिलाएं जिनका घर में रहना संभव नहीं है.
मानव तस्करी की शिकार महिलाएं
एचआईवी एड्स की शिकार महिलाएं जो परिवार द्वारा परित्यक्त होती हैं और जिनका समाज में कोई नहीं होता है.
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