मिथिला मखान: जड़ों से जुड़ने के जद्दोजहद की कहानी
नवीन शर्मा
निर्देशक नीतिन चंद्रा की फिल्म मिथिला मखान मैथिल समाज की अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाने की जद्दोजहद की संवेदनशील कथा है. फिल्म में वर्तमान के बिहार की कई समस्याओं की और हल्का इशारा भी किया गया है. बिहारी समुदाय की सबसे बड़ी समस्या है पलायन. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ये समस्या विकराल रूप ले चुकी है. यह फिल्म बड़ी शिद्दत से इस समस्या के साथ जुड़ी कई अन्य समस्याओें को भी परत-दर परत उजागर करती चलती है.
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फिल्म की पटकथा बिहार में मखाना व्यवसाय पर केन्द्रित है:
फिल्म का नायक क्रांति प्रकाश कनाडा के टोरंटो में अच्छे पैकेज की नौकरी कर रहा है. वो वर्षों बाद सिर्फ दो-चार दिन के लिए पैतृक गांव लौटता है. इन्हें चंद दिनों में वो अपनी जड़ों को तलाशने में लग जाता है. क्रांति के बाबा का बंद कमरा उसे अपने पैतृक व्यवसाय मखान के कारोबार की दास्तां बताता है. अपनी मां के तमाम विरोध के बावजूद क्रांति अपने पैतृक व्यवसाय को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लग जाता है. इस काम में उसकी राह में बाधा डालनेवाला खलनायक है ब्रह्मा सिंह. इसी के परिवार ने क्रांति के बाबा की हत्या कराकर उनका कारोबार चौपट करा दिया था. इसी हत्याकांड के बाद क्रांति के परिवार ने अपना पैतृक गांव छोड़ दिया था.
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ब्रह्मा सिंह ने मखान के कारोबार पर एकाधिपत्य (मोनोपोली) कर लिया था. इसलिए वो नहीं चाहता था कि इसमें कोई उसका प्रतियोगी हो. वहीं क्रांति हर हाल में अपने पैतृक कारोबार को फिर से खड़ा कर अपनी पारिवारिक विरासत से जुड़ने की कोशिश करता है. ब्रह्मा सिंह की तमाम कुटिल साजिशों के बावजूद क्रांति हार नहीं मानता. क्रांति के इस संघर्ष को उसकी प्रेमिका मैथिली पूरा समर्थन देती है. वो खुद भी पेंटिंग की शिक्षा लेकर अपने गांव में ही रहकर मिथिला पेंटिंग की विरासत को बचाने की कोशिश में जुटी है. फिल्म के अंंतिम सीन में ब्रह्मा सिंह बंदूक के बल पर क्रांति को पोखर से मखान निकालने के लिए रोकना चाहता है. वो एक ग्रामीण पर गोली भी चलाता है.
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इसके बाद मैथिली खुद क्रांति को मखान निकालने के लिए भेजती है. ब्रह्मा सिंह क्रांति पर भी गोली चलाना चाहता है लेकिन उसी समय क्रांति के साथ के बुजुर्ग ब्रह्मा सिंह को गोली मार देते हैं. इस तरह क्रांति का अपने पैतृक व्यवसाय को फिर से स्थापित करने का संघर्ष अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है.
राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली मैथिल फिल्म:
फिल्म की कहानी अच्छी है. कलाकारों का चुनाव भी सही है इन्होंने सधा हुआ अभिनय किया है. यह पहली मैथिल फिल्म है जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (63वां)मिला है. यह बेहतरीन फिल्म है अगर आप अच्छी और साफ-सुथरी फिल्मों के शौकिन हैं तो जरूर देखें.
निर्देशक की बात
फिल्म के निर्देशक नीतीन चंद्रा ने सात अगस्त को रांची में 7वें जागरण फिल्म फेस्टिवल में फिल्म की स्क्रिनिंग से पहले पैनल डिस्कशन में कहा था कि यह फिल्म अपनी भाषा को बचाने की कोशिश है. उन्होंंने कहा कि मैथिल भाषा में पहली फिल्म बने कई दशक हो गए लेकिन अब जाकर किसी मैथिल फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है.
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नीतिन खुद भोजपुरी भाषी है लेकिन उन्होंने मैथिल भाषा में फिल्म बनाकर वाकई काबिले तारीफ काम किया है. नीतिन भोजपुरी को अपनी मां बताते हैं और अन्य बिहारी भाषाओं जैसे मैथिल, अंगिका या वज्जिका आदि को अपनी मौसी बताते हैं. उनकी चिंता है कि हमारी वर्तमान पीढ़ी अपनी भाषा और संस्कृति से कटती जा रही है. युवा अपनी मातृभाषा तक नहीं जानते हैं. वे इसके लिए अभिभावकों को दोषी करार देते हैं क्योंकि वे अपने घरों में बच्चों से अपनी मातृभाषा में बात नहीं करते हैं.
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वे मराठी, बंगांली और दक्षिण भारतीय लोगों का उदाहरण देते हुंए बताते हैं कि ये लोग अपनी भाषा से कितना प्रेम करते हैं. यहीं वजह है कि इन भाषाओं में काफी अच्छी फिल्म बनतीं है. नीतिन कहते हैं कि 12वीं तक हर क्षेत्र में वहां की मातृभाषा की पढ़ाई जरूर होनी चाहिए,तभी जाकर ये भाषाएं बची रह पाएंगी.
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