#Jharkhand18years : लगभग 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषित, हर साल मरते हैं 20 हजार
15 नवंबर, 2018 को झारखंड गठन के 18 वर्ष पूरे हो जायेंगे. एेसे में इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि क्या जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए झारखंड अलग राज्य का निर्माण किया गया था वे पूरे हो पाये या नहीं.
15 अक्तूबर को ‘Global hunger index’ यानी वैश्विक भूख सूचकांक जारी किया गया. जीएचआई में भारत इस बार और नीचे गिरकर 103वें रैंक पर पहुंचा है. भारत के लिए परेशान करने वाली बात ये है कि इस सूची में कुल 119 देश ही हैं. भूख के सूचकांक के निर्धारण में जिन विषयों पर गौर किया जाता है उनमें सर्वप्रमुख है दो वर्ष तक के आयु के बच्चों में पोषण की स्थिति.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 85 करोड़ 30 लाख लोग भुखमरी का शिकार हैं. भारत में भूखे लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ से ज्यादा है. इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा कहीं न कहीं हर दिन भूखा सोने मजबूर है, जिससे हर वर्ष लाखों जान चली जाती है. झारखंड में प्रतिवर्ष 20 हजार बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है.
प्रतिदिन भूख से मरते हैं तीन हजार बच्चे
झारखंड में 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार
झारखण्ड की स्थिति भी बदतर ही है. अपने 18 साल के अस्तित्व में झारखण्ड मानव विकास के कई मोर्चों पर पीछे खड़ा है और इसका भुगतान कर रहे हैं झारखण्ड की माएं और उनके कुपोषित बच्चे.
NFHS के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में 47.7 प्रतिशत कुपोषण के शिकार हैं जिनकी उम्र 0-5 तक के बीच है. 2011 की जनगणना में तो यह बात खुलकर सामने आयी थी कि प्रतिवर्ष झारखंड में कुपोषण से 20 हजार बच्चों की मौत हो जाती है. आंकड़ों के अनुसार झारखंड में जन्म लेनेवाले करीब आधे बच्चे कुपोषित हैं. पांच साल तक की उम्र में जिन बच्चों की मौत होती है, उसके पीछे कारण कुपोषण ही है.
एनेमिक मां के बच्चे होते हैं कुपोषण के शिकार
झारखंड की लगभग 70 प्रतिशत से महिलाएं एनीमिया की शिकार है, जिनमें से 30-40 प्रतिशत को सिवियर एनीमिया है. वैसे में जब कम उम्र में इनकी शादी कर दी जाती है तो उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि जब मां ही स्वस्थ नहीं है तो बच्चे कैसे स्वस्थ होंगे.
गरीबी कुपोषण का एक बड़ा कारण
झारखंड में गरीबी बहुत ज्यादा है, जिसके कारण यहां के लोग पोषक आहार नहीं ले पाते हैं और कुपोषण और एनीमिया के शिकार बनते हैं. राज्य की लगभग 54 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारती है. देश में वर्ष 2000 में प्रति व्यक्ति आय का औसत 16,764 रुपये था जबकि झारखंड में यह 10,451 रुपये था, कहने का आशय यह है कि प्रदेश में गरीबी भी काफी है और रोजगार के अभाव में लोग पलायन के लिए मजबूर हैं.
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