जानिए कौन हैं सिवान के पूर्व बाहुबली सांसद की पत्नी हीना शहाब
सीवान के ‘साहेब’ पूर्व बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन की उम्रकैद की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की खंडपीठ ने सीवान के चर्चित एसिड बाथ डबल मर्डर (Acid Bath Double Murder case) मामले में पटना हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखा. गौरतलब है कि नौ दिसंबर, 2015 को निचली अदालत ने शहाबुद्दीन उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसपर 30 अगस्त, 2017 को पटना हाई कोर्ट ने मुहर लगा दी थी.
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला कर दिया है कि सिवान के पूर्व बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की उम्र जेल में ही कटेगी, ऐसे में सिवान संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण में परिवर्तन आये हैं. मोहम्मद शहाबुद्दीन ने काफी कम उम्र में राजनीति में प्रवेश किया था और अपने बाहुबल और प्रभाव के बलबूते लालू यादव के चहेते बन गये थे. कई मौकों पर राजद सरकार को बचाने, मंत्रियों, विधायकों को धमका कर राजद के पाले में रहने के लिए मजबूर करने का काम किया और लालू के माय समीकरण के प्रसिद्द मोहरे रहे. प्रतापपुर में जन्मे शहाबुद्दीन ने कॉलेज जीवन में ही राजनीति में प्रवेश कर लिया था और उन्होंने कम्युनिस्टों और जमीन के मालिकों के बीच की लड़ाई में जमीन के मालिकों के पक्ष में हथियार उठाया. कम्युनिस्टों के साथ खुनी संघर्ष किया. और इस संघर्ष में पैसे और हथियार से पूंजीपति लोगों ने शहाबुद्दीन की मदद की. शहाबुद्दीन का रूतबा बढ़ता गया और फिर चुनावी राजनीति में उन्होंने प्रवेश किया. संघर्ष ऐसा खुनी कि शाबू-AK 47 नाम ही पड़ गया. 1986 में हुसैनगंज थाने में इन पर पहली FIR दर्ज हुई थी. आज उस थाने में ये A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर है.
मात्र 23 की उम्र में 1990 में विधायक बन गये. अपने राजनीतिक जीवन में दो बार विधायक बने और चार बार सांसद. 1996 में केन्द्रीय राज्य मंत्री बनते-बनते रह गये थे क्योंकि एक आपराधिक केस खुल गया था.
सिवान में ऐसा रूतबा कि कोई डॉक्टर पचास रूपये से ज्यादा फीस नहीं लेता था, क्योंकि “साहब” ऐसा चाहते हैं. रात को आठ बजे के बाद लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे. वे अपने घर में जनता की अदालत लगाते थे, जिसमे आम जन को छोडिये, खुद पुलिस अधिकारी अपने तबादले को रुकवाने के लिए अर्जी लेकर हाज़िर हो जाते थे.
पर फिर वक्त ने करवट ली और राज्य में नीतीश कुमार क्राइम फ्री बिहार का एजेंडा लेकर सत्ता में आये. ऐसे में शहाबुद्दीन ने खुद को पुलिस और प्रशासन के खिलाफ खुद को पाया. चंद्रशेखर मर्डर केस, तेज़ाब ह्त्या काण्ड, AK 47 हथियारों का पकड़ाया जाना और फिर इन हथियारों का पाकिस्तान कनेक्शन, पुलिस से मुठभेड़, तत्कालीन जिलाधिकारी सी के अनिल और एसपी रत्न संजय के द्वारा शहाबुद्दीन को सीवान जिले से तड़ीपार किया जाना आदि ऐसे कारक थे जिन्होंने शहाबुद्दीन की राजनीतिक रसूख को कम किया. 2009 में शहाबुद्दीन को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव लड़ने से बैन कर दिया. तब इसकी पत्नी हिना को हराकर ओमप्रकाश सांसद बने. सिवान में नया राजनीतिक नेतृत्व उभरा और खुद शहाबुद्दीन को तिहार जेल भेज दिया गया. हालाँकि महागठबंधन के शासन काल में जब भागलपुर जेल से शहाबुद्दीन छूटे थे और उनकी रिहाई के स्वागत के लिए हजारों गाड़ियों का काफिला सिवान से भागलपुर गया था, जिसकी तस्वीर बिहारवासी आज भी नहीं भूले हैं, तो ऐसे में एकबारगी लगा कि शायद ‘साहेब’ के अच्छे दिन फिर से लौटने वाले हैं, पर ऐसा हो नहीं पाया.
बाहुबली सांसद के जेल में रहने के चलते हीना शहाब ने मोर्चा संभाल रखा है:
और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शहाबुद्दीन को राजनीतिक क्षेत्र का खिलाड़ी बनने से रोक दिया तो अधिक से अधिक वे परदे के पीछे से अपनी गतिविधियाँ संचालित कर सकते हैं. ऐसे में फिर से एक बार लाइमलाइट उनकी पत्नी हीना शहाब पर आ गया है.
हीना शहाब को अब तक चुनावी राजनीति में सफलता नहीं मिली है, और उन्हें भाजपा के ओम प्रकाश यादव से हार खानी पड़ी है. पर राजद ने उन्हें विधान पार्षद बनाकर शहाबुद्दीन में अपना विश्वास बनाए रखा है.
2009 में राजनीति में आईं थी हिना शहाब
इसके बाद 2014 में बीजेपी के टिकट पर ओम प्रकाश ने फिर 1 लाख से भी ज्यादा वोट से हीना को हराया. यह वही ओम प्रकाश थे, जिनकी कभी शहाबुद्दीन ने सरेआम पिटाई की थी. हीना ने 2014 में जीतने की भरपूर कोशिश की थी। इस दौरान वे गांवों में वोट मांगने भी गई.
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