बिन्नी और सचिन बंसल ने साल 2007 में फ्लिपकार्ट की शुरुआत की और पहले सिर्फ किताबें बेचने का फैसला किया. दोनों ने 4 लाख रुपये पूंजी के साथ कंपनी शुरू की. शुरुआती काम था किताबों की होम डिलिवरी. जैसा कि हर स्टार्ट अप के साथ होता है, इस कंपनी के मालिक और स्टाफ दोनों वही थे.
बिन्नी और सचिन बंसल खुद किताबें खरीदते और वेबसाइट पर आए ऑडर्स पर अपने स्कूटर से डिलीवरी करते. कंपनी के पास प्रचार के भी खास साधन नहीं थे इसलिए दोनों बुक स्टोर्स के पास जाकर अपनी कंपनी के पर्चे भी दिया करते थे. फिर दोनों ने 2008 में बैंगलुरू में एक फ्लैट और दो कंप्यूटर सिस्टम के साथ अपना ऑफिस खोला. अब तक उन्हें हर दिन करीब 100 ऑर्डर मिलने लगे थे.
थोडा समय बीतने के बाद फ्लिपकार्ट ने बेंगलुरू में सोशल बुक डिलीवरी सर्विस ‘वीरीड’ और ‘लुलु डॉटकॉम’ को खरीद लिया. साल 2011 में फ्लिपकार्ट ने कई और कंपनियां खरीदीं जिनमें बॉलीवुड पोर्टल चकपक की डिजिटल कंटेट लाइब्रेरी भी शामिल थी.
फ्लिप्कार्ट ने ऑनलाइन रिटेलिंग की मुश्किलों को अवसर में बदल डाला:
ऑनलाइन सामान लेते वक्त कई लोगों के मन में कई तरह की आशंकाएं थीं. सामान की गुणवत्ता से लेकर उसकी डिलिवरी की टाइमिंग तक. फ्लिपकार्ट ने इस मुश्किल को मौके में बदल लिया. बिन्नी और सचिन बंसल पहली बार भारत में कैश ऑन डिलिवरी का विकल्प लेकर आए. इससे लोगों को अपना पैसा सुरक्षित महसूस हुआ और कंपनी पर भरोसा बढ़ता गया. साल 2008-09 में फ्लिपकार्ट ने 4 करोड़ रुपये की बिक्री कर दी. इसके बाद निवेशक भी इस कंपनी की ओर आकर्षित हुए.
कंपनी ने कस्टमर सर्विस के साथ साथ सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन पर काम किया. जब कोई किताब खरीदने के लिए उसका नाम किसी सर्च इंजन में डालता तो सबसे ऊपर फ्लिपकार्ट का नाम आता। इस कारण कंपनी को विज्ञापन भी मिलने लगे.
2009 से कंपनी को निवेशक मिलने लगे:
कंपनी में साल 2009 में ऐसेल इंडिया ने 10 लाख डॉलर का निवेश किया जो साल 2010 में एक करोड़ डॉलर पहुंच गया.
इसके बाद 2011 में फ्लिपकार्ट को एक और बड़ा निवेशक टाइगर ग्लोब मिला जिसने दो करोड़ डॉलर का निवेश किया. वेबसाइट चल निकली तो किताबों के अलावा फर्नीचर, कपड़े, असेसरीज, इलेक्ट्रॉनिक्स और गैजेट जैसे सामान भी बेचे जाने लगे. ई-कॉमर्स का बाजार बढ़ने के साथ फ्लिपकार्ट को दूसरी कंपनियों से चुनौती मिलने लगी थी. इस को देखते हुए उन्होंने कुछ ऑनलाइन रिटेल वेबसाइट को खरीदा. फ्लिपकार्ट ने 2014 में मिंत्रा और 2015 में जबॉन्ग को खरीद लिया. कंपनी स्नैपडील को भी खरीदना चाहती थी लेकिन बात नहीं बन पाई. लेकिन, मार्च 2018 में वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट की 77 प्रतिशत हिस्सेदारी 16 अरब डॉलर में खरीद ली.
दरअसल, कंपनी को अमेजन के भारत में आने के साथ ही चुनौती मिलनी शुरू हो गई थी. इस प्रतिस्पर्धा में उन्हें काफी निवेश करना पड़ रहा था हालांकि, वॉलमार्ट के साथ अमेजन भी फ्लिपकार्ट को खरीदने की रेस में शामिल थी लेकिन वॉलमार्ट आगे रही.
दोनों के अलग अलग रोल:
फ्लिप्कार्ट टीम के दोनों लोगों की अलग अलग भूमिका रही. बिन्नी बंसल को बैक रूम मास्टर माइंड माना जाता है. अमूमन सचिन बंसल ही मीडिया को डील किया करते थे। बिन्नी कंपनी में पीछे रहकर काम करते रहे और सचिन उसके लीडर के तौर पर सामने रहे. मीडिया में ये भी खबरें थीं कि फ्लिपकार्ट छोड़ने को लेकर सचिन बंसल ज्यादा खुश नहीं थे. इकोनॉमिक्स टाइम्स ने लिखा है कि कंपनी दो सीईओ को नहीं रखना चाहती थी.