हिंदीपट्टी में मिली हार से बौखलाई भाजपा, थिंक टैंक ने आदिवासियों को रिझाने की बनायी रणनीति
नयी दिल्ली : हिंदी बेल्ट में भाजपा की पकड़ हाल के चुनावों में बनी थी. पर हिंदी बेल्ट में तीन महत्वपूर्ण राज्य- मध्यप्रदेश जो आरएसएस का सबसे बड़ा प्रयोगशाला रहा है, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की हार ने रणनीति पर पुनर्विचार के लिए भाजपा नेतृत्व को बाध्य कर दिया है, ऐसा लगता है.
राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद भाजपा में घमासान मचा है. पहली बार केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि नेतृत्व को असफलताओं के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और उसकी जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब सफलता का सेहरा नेतृत्व के सिर बंधता है तो हार की जिम्मेदारी भी वो ले. असफलताओं के दौरान ही नेतृत्व को अपनी प्रतिबद्धता और विश्वसनीयता सिद्ध करने का मौका मिलता है.
Union Minister and BJP leader Nitin Gadkari in Pune yesterday: Leadership should own up to failures. Until it does so its loyalty and commitment towards the organisation are not proved. pic.twitter.com/LsZzTKDgGV
— ANI (@ANI) December 23, 2018
गडकरी का यह बयान इस ओर इशारा करता है कि बीजेपी में हार की समीक्षा हो रही है और पार्टी चिंतित है. भाजपा सूत्रों के हवाले से यह जानकारी भी मिली है कि पार्टी में हार पर मंथन जारी है और नये साल के फरवरी माह में पार्टी के पांच हजार से अधिक जनप्रतिनिधि ओडिशा में एकजुट होकर हार पर विचार करेंगे और वोटर्स का मन जीतने के लिए नयी रणनीति बनायेंगे.
हिंदी पट्टी में हार के बाद आदिवासियों को रिझाने में जुटी भाजपा विशेषकर हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली हार के बाद भाजपा नयी रणनीति बनाने पर मजबूर हो गयी है. इन तीन राज्यों के चुनाव परिणामों से जो आंकड़े उभरकर सामने आये हैं, उसने यह साबित किया है कि आदिवासी भाजपा से नाराज हैं और उनकी नाराजगी भाजपा के वोट शेयर और सीट शेयर को प्रभावित कर रही है.
आदिवासियों की नाराजगी दूर करने के लिए फरवरी महीने में भाजपा के 5,000 निर्वाचित सदस्य ओडिशा में जुटेंगे. इस कॉन्क्लेव में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आदिवासियों को टारगेट में लेने की रणनीति अपनाई जायेगी. ट्राइबल रिजर्व सीटों में बिगड़ी भाजपा की स्थिति हाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव हुए यह तीनों राज्य ऐसा है जहां आदिवासियों की संख्या ज्यादा है. इन वोटर्स के दूर जाने से भाजपा ने वोट शेयर और सीट दोनों गंवाई है. इन राज्यों भाजपा की स्थिति पिछले दो चुनावों से खराब हुई है.
छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां पूरे देश के आदिवासी समुदाय का एक तिहाई निवास करता है. यहां अगर सीट शेयरिंग की बात करें तो 2013 में यह 37.9 था जो 2018 में मात्र 10.3 रह गया जबकि 2008 में यह आंकड़ा 65.5 का था. वहीं अगर वोट शेयरिंग की बात करें तो यह 2008 में 39.2, 2013 में 38.6 और 2018 में यह 32.3 हो गया.
मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा सीट शेयरिंग के मामले में 2008 में 61.7, 2013 में 66 प्रतिशत और 2018 में घटकर 34 प्रतिशत हो गया. वोट शेयरिंग की बात करें तो यह आंकड़ा 2003 में 38.7, 2013 में 42.6 और 2018 में 38.9 हो गया.
वहीं राजस्थान में सीट शेयरिंग की स्थिति कुछ ऐसी रही, 2003 में आठ प्रतिशत, 2013 में 72 प्रतिशत और 2018 में 36 प्रतिशत. जबकि वोट शेयरिंग में 2003 में 26.9, 2013 में 41.5 और 2018 में 38.7 रहा.
ये आंकड़ें भाजपा की चिंता बढ़ा रहे हैं और उसकी अभिभावक संस्था आरएसएस ने हिदायत दे दी है कि आदिवासियों की नाराजगी दूर की जाये. आदिवासी पारंपरिक तौर से कांग्रेस के वोटर रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से वे भाजपा के साथ थे, ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी अफोर्ड नहीं कर पायेगी. 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश में आदिवासियों की संख्या 9 प्रतिशत है और यह 9 प्रतिशत बड़ा उलट-फेर करने में सक्षम है, यह बात अब भाजपा भी समझ गयी है.
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