जानें कैसा रहा है झारखंड के ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन
झारखंड अलग राज्य बने 18 साल बीत चुका है. संभव है कि अभी तक इस राज्य ने वो मुकाम हासिल नहीं किया जिसके लिए राज्य का गठन किया गया था. लेकिन कहना ना होगा कि आज यह राज्य विकास के पथ पर अग्रसर है और आदिवासियों की आवाज दबायी नहीं जा रही. उन्हें सुना जाता है और जल-जंग़-जमीन पर उनके मालिकाना हक को लेकर सरकार भी सोच रही है और यह सबकुछ जिस व्यक्ति की वजह से हो पाया है वह हैं दिशोम गुरु या गुरुजी शिबू सोरेन की वजह से. 11 जनवरी को वे 75 साल के हो जायेंगे. आईये हम भी गवाह बने उनकी राजनीतिक यात्रा का.
लकड़ी बेचने का काम करते थे शिबू सोरेन
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन हजारीबाग जिले के नेमारा गांव में हुआ था. अब यह गांव रामगढ़ जिले में आता है. उनके पिता साधारण किसान थे. लेकिन गांव के महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी, जिसके बाद शिबू सोरेन को कठिन आर्थिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा. उन्हें जंगल से लकड़ी जमाकर उसे बेचकर गुजारा करना पड़ता था. उनकी शादी रूपी किस्कू से हुई थी और उनके तीन बेटे हैं: दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन.
राजनीतिक जीवन
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष शिबू सोरेन का जन्म नेमारा में हुआ लेकिन उनकी कर्मभूमि बना दुमका जिला. उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे हैं. वे आठ बार दुमका संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं. पिछले चार लोकसभा चुनावों में वे लगातार यहां से निर्वाचित हुए हैं. बपचन में शिबू सोरेन ने महाजनों के जुल्मों को सहा. उसी वक्त से वे आदिवासी समाज में व्याप्त हडि़या दारु के प्रचलन को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर घर से निकल पड़े.
आदिवासी समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए सोरेन धनबाद के टुंडी प्रखंड क्षेत्र में आश्रम स्थापित कर लोगों को संदेश देने लगे. शिबू सोने को झारखंड अलग राज्य आंदोलन को नए सिरे से शुरु करने के लिए बिनोद बिहारी महतो और मार्क्सवादी कॉ-आर्डिनेशन कमेटी (एमसीसी) के संस्थापक ए के राय ने प्रेरित किया. इस प्रेरणा को मंत्र मानकर शिबू सोरेन राजनीति के क्षेत्र में कूद पड़े और पहली बारी 1977 में टुंडी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़, लेकिन वे हार गये.इसके पहले शिबू सोरेन आदिवासी बहुल संथलापरगना के ग्रामीण इलाकों में घूम-घूम कर सामज में व्याप्त कुरीतियों से मुक्त होने का संदेश देते रहे.
1980 में जीता दुमका से लोकसभा चुनाव
शिबू सोरेन ने 1980 में मध्यावधि चुनाव में दुमका (सु) लोकसभा क्षेत्र में जीत दर्ज कर समूचे देश में अलग झारखंड राज्य निर्माण के मुद्दे को स्थापित करने में सफलता हासिल की. वर्ष 1980 में विधानसभा चुनाव में भी संथाल परगना के 18 में से नौ सीटों पर झामुमो के प्रत्याशियों के निर्वाचित होने से बिहार की राजनीति मे हलचल पैदा हो गई. हालांकि 1984 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन दुमका में कांग्रेस के पृथ्वीचन्द्र किस्कू से पराजित हो गए लेकिन 1985 मे हुए विधानसभा चुनाव में शिबू सोरेन के नेतृत्व में संथाल परगना में झामुमो का जलवा बरकरार रहा.गुरुजी जामा से विधायक चुने गए और उतार चढ़ाव के बावजूद भी उन्होंने संथाल परगना को नहीं छोड़ा. वर्ष 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में गठित विपक्षी गठबंधन के साझा उम्मीदवार के रुप में शिबू सोरेन दुमका से पुन: सांसद बने जबकि राजमहल से झामुमो के ही साइमन मरांडी निर्वाचित हुए.
झारखंड मुक्ति मोरचा का गठन
झारखंड मुक्ति मोरचा से पहले शिबू सोरेन ने 1969 में ‘सोनत संताली समाज’ का गठन किया. उसके बाद चार फरवरी 1973 को विनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और कामरेड एके महतों ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोरचा का गठन किया. उस वक्त विनोद बिहारी महतो पार्टी के अध्यक्ष बने थे और शिबू सोरेन महासचिव. पार्टी गठन के बाद झारखंड अलग राज्य का आंदोलन तेज हुआ और वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ.

तीन बार बने झारखंड के मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वे पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने. फिर 2008-09 में और फिर 2009-10 में भी वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2006 में केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी रहे, लेकिन चिरुडीह कांड में दोषी सिद्ध किये जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
विवादों से भी रहा नाता
शिबू सोरेन एक ऐसे नेता हैं जिन्हें सुनने के लिए लोग घंटों पानी भी भींगते हुए भी खड़े रहते थे. उनकी एक बात पर लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे. यही कारण है कि कई विवाद भी उनके नाम रहा. जिसमें चिरुडीह कांड और उनके पर्सनल सेक्रेटरी शशिनाथ झा की हत्या का मामला भी शामिल है. चिरूडीह कांड में 11 लोगों की हत्या हुई थी.
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