बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई..गीतकार वर्मा मलिक की पुण्यतिथि पर विशेष
नवीन शर्मा
फ़िल्म अभिनेता व निर्देशक मनोज की मशहूर फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान‘ (1974) में एक हिट गाना था – बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गयी. यह नायाब गीत जिस शख्स की कलम से निकला था वो वर्मा मलिक थे.
इस गीत के बनने की बड़ी मज़ेदार कहानी है. मनोज के कहने पर गीतकार वर्मा मलिक ने महंगाई पर एक गाना लिखा. उसे पहले जब लोगों ने पढ़ कर सब हंसे. कंटेंट पर भी और इस पर भी क्या यह फिल्माने योग्य गाना है? वर्मा मलिक ने मनोज को किसी तरह कन्विंस किया कि इसमें हिट होने की पर्याप्त गुंजाईश है.
रेकॉर्डिंग शुरू हुई तो इस अनूठे गीत को पढ़ कर लता मंगेशकर का भी हंसी के मारे बुरा हाल था. कहां से शुरू और बीच में कहां बहक जाता है गाना. दूसरे गायक मुकेश, चंचल और जानी बाबी कव्वाल भी कतई सीरियस नहीं थे. संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को भी इसमें कुछ दम नहीं दिखा. जैसे-तैसे गाना रिकॉर्ड हुआ. फिल्मांकन के समय भी हिरोइन मौशमी चैटर्जी और प्रेमनाथ भी हंस-हंस कर बेहाल थे. यह कैसा गाना है यार? कैसा रिस्पॉन्स मिलेगा पब्लिक का? लेकिन जैसे ही सब स्टूडियो से बाहर निकले तो वे अचरज में पड़ गए क्योंकि यूनिट के जूनियर आर्टिस्ट से लेकर स्पॉट बॉय तक हर छोटा आदमी गुनगुनाते हुए मिला – बाक़ी जो बचा था महंगाई मार गयी।और फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही यह गाना सुपर-हिट हो गया.
महंगाई और अराजकता के खिलाफ सिंबल बना
उस दौर में ऐसा माहौल था कि लोग महंगाई और अराजकता से परेशान थे. ऐसे में यह गीत जनता-जनार्दन की आवाज़ बन गया. हर गली-कूचे में यह गीत छा गया. भारत सरकार भी परेशान हो उठी. कुछ अरसे तक प्रतिबंधित भी रहा. मजेदार बात यह भि रही कि इस गीत की लंबाई भी लोगों को नहीं अखरी.
उसने कहा तू कौन है, मैंने कहा उल्फ़त तेरी
उसने कहा तकता है क्या, मैंने कहा सूरत तेरी
उसने कहा चाहता है क्या, मैंने कहा चाहत तेरी
मैंने कहा समझा नहीं, उसने कहा क़िस्मत तेरी
एक हमें आँख की लड़ाई मार गई
दूसरी तो यार की जुदाई मार गई
तीसरी हमेशा की तन्हाई मार गई
चौथी ये खुदा की खुदाई मार गई
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई
तबीयत ठीक थी और दिल भी बेक़रार ना था
ये तब की बात है जब किसी से प्यार ना था
जब से प्रीत सपनों में समाई मार गई
मन के मीठे दर्द की गहराई मार गई
नैनों से नैनों की सगाई मार गई
सोच सोच में जो सोच आई मार गई,
बाकी कुछ बचा …
कैसे वक़्त में आ के दिल को दिल की लगी बीमारी
मंहगाई की दौर में हो गई मंहगी यार की यारी
दिल की लगी दिल को जब लगाई मार गई
दिल ने की जो प्यार तो दुहाई मार गई
दिल की बात दुनिया को बताई मार गई
दिल की बात दिल में जो छुपाई मार गई,
बाकी कुछ बचा …
पहले मुट्ठी विच पैसे लेकर
पहले मुट्ठी में पैसे लेकर थैला भर शक्कर लाते थे
अब थैले में पैसे जाते हैं मुट्ठी में शक्कर आती है
हाय मंहगाई महंगाई …
दुहाई है दुहाई मंहगाई महंगाई …
तू कहाँ से आई, तुझे क्यों मौत ना आई, हाय महंगाई ..
शक्कर में ये आटे की मिलाई मार गई
पौडर वाले दुद्ध दी मलाई मार गई
राशन वाली लैन दी लम्बाई मार गई
जनता जो चीखी चिल्लाई मार गई,
बाकी कुछ बचा …
गरीब को तो बच्चों की पढ़ाई मार गई
बेटी की शादी और सगाई मार गई
किसी को तो रोटी की कमाई मार गई
कपड़े की किसी को सिलाई मार गई
किसी को मकान की बनवाई मार गई
जीवन दे बस तिन्न निसान – रोटी कपड़ा और मकान
ढूंढ ढूंढ के हर इन्सान
खो बैठा है अपनी जान
जो सच सच बोला तो सच्चाई मार गई
और बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई …
जीवन का सफर
गीतकार वर्मा मलिक या बरकत राय मलिक का जन्म 13 अप्रैल, 1925, फ़िरोज़पुर में हुआ था. वे जाने माने गीतकार थे. वह पंजाबी और उर्दू के लेखक थे. हिंदी भाषा उन्होंने मुम्बई आकर ही सीखी थी. उन्होंने पंजाबी फ़िल्मों से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी. सर्वप्रथम उन्होंने हंसराज बहल की फ़िल्म में काम किया था.
रेखा की पहली फ़िल्म ‘सावन भादों’ में वर्मा के लिखे गीत ने कई साल तक धूम मचाए रखी. इसके बाद ‘पहचान’, ‘बेईमान’, ‘अनहोनी’, ‘धर्मा’, ‘कसौटी’, ‘विक्टोरिया न. 203’, ‘नागिन’, ‘चोरी मेरा काम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘संतान’, ‘एक से बढ़कर एक’, जैसी फ़िल्मों में हिट गीत लिखने वाले वर्मा मलिक , एक सफल गीतकार के रूप में जाने लगे.
मनोज कुमार की कई फिल्मों के लिए उन्होंने बहुत से लोकप्रिय गीत लिखे.
फिल्म फेयर पुरस्कार
फ़िल्म ‘पहचान’ के गीत “सबसे बड़ा नादान वही है” के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला.
फ़िल्म ‘बेइमान’ के गीत “जय बोलो बेइमान की जय बोलो” के लिये उन्हें फ़िल्मफेयर मिला.
15 मार्च, 2009 को मुम्बई में उनका निधन हुआ.
हिट गीत
आज मेरे यार की शादी है
हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी
घटा छा गई है वारिस
हुस्न की वादियों में वारिस
कान में झुमका, चाल में ठुमका सावन भादों
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