जब नेहरू ने बर्मा में मिश्र के राष्ट्रपति अब्देल गमेल नासेर के साथ होली खेली थी
प्रसन्न प्रभाकर
नेहरू और इजिप्ट के गमेल अब्देल नासेर उन दिनों बर्मा में थे. साल था 1958. अगले दिन वहां भी होली थी. म्यांमार में होली वसंत का शुभारंभ के रूप में मनाई जाती है. सभी अतिथियों को वहां के स्थानीय वस्त्र ( जैसे लुंगी) दिए गए. अलग-अलग पंडाल सजाए गए जिनमें ये अतिथिगण जाकर बैठते. चांदी की थाल लिए कुछ बर्मीज युवतियां आतीं और अंगुलियों से पानी छिड़कती. उसके बाद अतिथि भी उसी थाल में अंगुलियां डुबोकर पानी छिड़कते. लगातार दो-तीन पंडालों में जब ऐसा ही दुहराया गया तो नेहरू ऊब गए. उठकर बोले कि मैं अभी दिखाता हूँ कि भारत में होली कैसे खेली जाती है.
नासेर के साथ बहुत सारे लोग आए थे. नेहरू ने उनसे कहा कि जहां भी कोई बकेट दिखे उसमें पानी भरकर ले आएं. ऐसा ही किया गया. उसके बाद नेहरू ने पूरा का पूरा बकेट इजिप्ट के प्रेजिडेंट और बर्मा के प्रधानमंत्री पर उड़ेल दिया. खेल शुरू हो गया था. देशों के राष्ट्राध्यक्ष एवं विदेश मंत्री कुछ देर बाद बर्मा की सड़कों पर एक दूसरे के पीछे पानी लिए भागते फिर रहे थे.
होली तीन मूर्ति में भी मनती थी. आनंद भवन में भी मनी. कई कहानियां है. तब नेशनल हेराल्ड के कॉरेस्पोंडेंट रहे (बाद में विरोधी) पुरुषोत्तम दास टंडन बताते हैं कैसे वो छुपे हुए थे और कैसे उन्हें ढूंढकर बाहर निकाला गया. होली के अवसर पर बनाये गए विशेष गड्ढे में नेहरू के द्वारा फेंकने के कारण उन्हें चोट लग गई थी.
[jetpack_subscription_form title="Subscribe to Marginalised.in" subscribe_text=" Enter your email address to subscribe and receive notifications of Latest news updates by email."]