महासमर: रमाकांत मिश्र और सबा खान का बेहद प्रभावशाली जासूसी उपन्यास
Balendushekhar Mangalmurty


आखिर दो दिनों के बाद रमाकांत मिश्र और सबा खान का उपन्यास “महासमर” समाप्त किया. “महासमर” वास्तव में एक महाउपन्यास है. इसके दोनों भागों को जोड़ दिया जाए, तो ये लगभग 975 पेज में फैला हुआ महाउपन्यास है. रमाकांत मिश्र एक विद्वान और कलम के धनी व्यक्ति हैं, वहीँ सबा खान एक बेहद जहीन और थ्रिलर जॉनर की किताबों का गहन अध्ययन किये हुए इंसान हैं. दोनों की जुगलबंदी से हिंदी में थ्रिलर जॉनर में एक बेहद प्रभावशाली रचना के रूप में महासमर ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. इसका पहला हिस्सा एक सिटींग में पढ़ने के बाद मुझे बेहद उत्सुकता हुई कि आगे क्या होगा और इसका दूसरा पार्ट कब लिखा जायेगा. लेखकद्वय ने बेहद कम समय में, बेहद कुशलता से इसका दूसरा और फाइनल पार्ट लिख डाला. पहले पार्ट का सस्पेंस दूसरे पार्ट में भी बना रहा. इस नावेल के जिस खास पहलुओं ने मुझे प्रभावित किया, वो है इसके कथानक का वास्ट स्केल. लेखन शैली, जिसमें बेहद स्तरीय भाषा का इस्तेमाल किया गया है. आम चालू भाषा का प्रयोग आप नहीं पाएंगे. कहानी बिहार में सुपौल में विश्व बैंक के फंडिंग से बनाये गए इंस्टिट्यूट के बाढ़ ( जो बिहार में एक पेरेनियल प्रॉब्लम की तरह आज भी बना हुआ है, और लोगों ने इसे प्राकृतिक आपदा से किस्मत मान लिया है और जो सरकारी पदाधिकारियों और नेताओं के लिए सोने का अंडा देने वाली ऐसी मुर्गी बन गया है, जिसे बनाये रखने में सत्ता से जुड़े लोगों को फायदा दीखता है, नहीं तो क्या वजह है कि दामोदर घाटी परियोजना बनाकर जिस तरह दामोदर को बांध दिया गया, उसी तरह कोशी और अन्य नदियों के उपलब्ध जल संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं किया जा सकता था?) में बह जाने की जांच से शुरू होती है. फौरी तौर पर प्राकृतिक आपदा का शिकार संस्था के भवन की जब एम आई जब जांच शुरू करती है, तो षड़यंत्र का एक पूरा मकड़जाल उभरकर सामने आता है, जिसके ताने बाने में सिर्फ बिहार सरकार के प्रभावशाली लोग ही नहीं, बल्कि भारत सरकार के बेहद प्रभावशाली लोग, मंत्रालय, नौकरशाह, वैज्ञानिक, कॉर्पोरेट वर्ल्ड का बेताज बादशाह अंसल से लेकर थॉमस जैसे मुंबई पुलिस के डीसीपी, और बिहार पुलिस के सब इंस्पेक्टर और मामूली पत्रकार में शामिल नज़र आते हैं. कहानी फिर सिर्फ सुपौल में सीमित नहीं रहती है, बल्कि मुंबई, छत्तीसगढ़, दिल्ली, नार्थ ईस्ट, नेपाल – कुल मिलाकर एक बेहद विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में फ़ैल जाती है. आई एस आई की इस पुरे षड्यंत्र में संलिप्तता कहानी को और रोचक बनाती है. फिर हत्यायों का एक ऐसा सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसकी आंच में कई शख्सियतों की शाख धूमिल होती नज़र आती है. जांच की बढ़ती तपिश और उस तपिश से अपनी शाख को बचाये रखने की जद्दोजहद में इंटेलिजेंस एजेंसी और शक के घेरे में आये शख्सियतों के बीच चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है. इस कहानी में एक और एंगल है, जो कॉर्पोरेट वर्ल्ड की कंपनियों के काम करने के तरीकों पर असर डालती है, अपने उत्पादों के लिए बाज़ार बनाने के लिए कंपनियां किस हद तक जा सकती है, पढ़कर एक सिहरन सी होती है. फिर ध्यान अनायास ही वर्तमान कोरोना वायरस के संक्रमण की ओर चला जाता है, और मन संशंकित हो उठता है कि कहीं ये बायोलॉजिकल वारफेयर का हिस्सा तो नहीं है और इसकी जद में प्रतिद्वंद्वी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को चोट पहुंचाने और साथ ही वायरस का निरोधक वैक्सीन का बाजार बनाने का तो व्यापक, हिंसक खेल नहीं है.
लेखक द्वय की ये बेहद महत्वकांक्षी परियोजना है. अपने पहले प्रयास में 975 पेज की किताब लिख देना भगीरथ प्रयास से कम नहीं माना जाएगा. किताब गहन रिसर्च पर आधारित है, जो निःसंदेह लेखकद्वय के लेखन और शोध की उच्च स्तर की क्षमता की ओर इशारा करता है. साथ ही ये किताब इस ओर भी इंगित करता है कि हिंदी थ्रिलर जॉनर के क्षेत्र में नए सितारों का उदय हुआ है और उनसे आने वाले समय में कई और किताबों की उम्मीद है. महासमर उपन्यास के कुछ किरदार खासकर शत्रुजीत रे, सार्थक सांगवान औ शाहनवाज़ बेहद प्रभावशाली बन पड़े हैं और इन किरदारों को लेखकद्वय अपने आगे आने वाले उपन्यासों में भी बतौर किरदार रख सकते हैं. बिलकुल आर्थर कॉनन डॉयल के शरलॉक होम्स, अगाथा क्रिस्टी के हरक्यूल पोइरोट और मिस मार्पल की तरह. हिंदी के भी कई अन्य उपन्यासकारों ने सफलतापूर्वक ऐसा किया है. लेखकद्वय बेहद जहीन इंसान हैं, वे निःसंदेह इस आईडिया की सम्भावना पर गौर करेंगे.
पूरी कहानी बेहद तेज गति से कही गयी है. सस्पेंस बना रहता है और पाठक किताब बिना पूरा ख़त्म किये एक साइड रख पाने में असमर्थ होता है. ये लेखकद्वय की प्रभावशाली लेखन शैली का कमाल माना जाएगा.
फिलहाल रमाकांत मिश्र और सबा खान को एक बेहद प्रभावशाली उपन्यास “महासमर” लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई !!
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