फ़सल बीमा के साथ साथ किसानों खेतिहर मज़दूरों का जीवन बीमा भी हो: सुनील झा की कलम से
Sunil Jha
25 जून 2020 को वज्रपात से अकेले बिहार में जान-माल की भारी क्षति हुई। उस दिन सचमुच ऐसा लगा था कि बिहार पर ही किसी ने बिजली गिरा दी हो। राज्य सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग 26 जून को शाम 6 बजे मृतकों का जिलावार आंकड़ा डाल चुका था। इन आकड़ों के मुताबिक़ कुल 24 जिलों में वज्रपात की वज़ह से 96 लोगों की मौतें हुई। सबसे प्रभावित गोपालगंज जिला रहा, जहाँ सर्वाधिक 13 लोगों की मौतें दर्ज़ की गयी। मृतकों की संख्या बताने के अलावे और किसी भी प्रकार का आंकड़ा जैसे कितने लोग घायल हुए, मृतकों में पुरुष, महिलायें और बच्चे कितने थे, किस समुदाय के थे, घायल कितने थे वग़ैरह, वेबसाइट पर दर्ज़ नहीं था। उस दिन नहीं, पर आज तक भी नहीं। शायद कभी होता भी नहीं हो।
पर नीचे जो मरता है या मरती है वह एक नाम होता है, वह किसी का पिता, किसी की मां या किसी के कलेजे का टुकड़ा होता है। मृतक भगल साह, चंदा देवी, शम्सुल मियां, सन्नी कुमार, शम्भु राम ज्यों-ज्यों ऊपर प्रखण्ड कार्यालय, फिर जिला समाहरणालय और फिर राज्य सचिवालय की तरफ़ बढ़ते जाते हैं, वे संख्या/नम्बर्स में बदलते जाते हैं। और जनता भी कितने दिनों तक ये संख्या याद करके रखे! कुछ दिनों के बाद बातें आयी-गयी हो जाती है और फिर सब कुछ सामान्य।
ख़ैर इसके पहले कि लोग सामान्य हों, मैनें स्वयं के प्रयास से विभागीय वेबसाइट पर उपलब्ध जिलावार मौतों की संख्या के पीछे लोगों को ढूंढ़ने की कोशिश की है। यह पता लगाने की कोशिश कि किस परिस्थिति में उनकी मौत हुई या घायल हुए और क्या असर पड़ा है उनपर जो पीछे बच गए। तो यह सब करने के लिए किया मैनें यह कि दैनिक हिंदुस्तान अख़बार के सभी 24 जिलों के संस्करणों को निकालकर पढ़ा, जो 26 जून को छप कर आए थे। ये सारे संस्करण अख़बार के वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। जिन जिलों में एक या दो मौतें हुई थीं, उन जिलों के संस्करणों में इससे संबंधित ख़बर ढूंढने में अच्छी ख़ासी मशक्कत हुई। ऐसी ख़बरों को पृष्ठ में एक छोटे सा कोना दिया गया था। सिर्फ कुछेक ख़बरों को छोड़ अधिकतर ख़बरों में नाम, उम्र, घटना के समय की परिस्थिति, मृत व्यक्ति की पारिवारिक स्थिति इत्यादि की जानकारी स्थानीय संवाददाताओं ने दर्ज़ की थी। इन ख़बरों में आयी सूचनाओं एवं आंकड़ों के विश्लेषण में निम्नलिखित बातें आयी हैं, जो मेरी समझ से महत्वपूर्ण हैं:-
1. मीडिया में वज्रपात से मरने वालों की संख्या 100 बताई गयी, जो आपदा प्रबंधन विभाग पर दर्ज़ आधिकारिक आंकड़ों से चार अधिक है। यह अंतर शायद इस बात से समझा सकता है कि 2 व्यक्तियों की मृत्यु हार्ट अटैक के कारण हुई और तीसरे व्यक्ति की मृत्यु को प्रशासन वज्रपात से हुई मौत के रूप में नहीं मान रहा था। चौथे व्यक्ति की मृत्यु मीडिया द्वारा रिपोर्ट की गयी है, परन्तु प्रशासन द्वारा इसकी सुधि अभी तक नहीं ली गयी है।
2. वज्रपात से 55 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से कई बुरी तरह झुलस गए हैं।
3. मृतकों में 96 लोगों की ख़बरें जो मीडिया रिपोर्ट में नाम के साथ दर्ज़ की गयी थी, उनमें से 74 पुरुष और 22 महिलाएं हैं।
4. मृतकों में वयस्कों की संख्या 72 और बच्चों (18 वर्ष से कम) की संख्या 19 थी। नौ लोगों की आयु मीडिया रिपोर्टों में नहीं बतायी गयी थी।
5. वज्रपात के कारण जो लोग घायल हुए या जिनकी मृत्यु हुई, उनमें से अधिकतर वो लोग थे जो खेतों में काम कर रहे थे। इस बार जून में ही अच्छी बारिश के कारण किसान धान के बिचड़े उखाड़ने या धान की रोपाई करने जैसे कामों में उत्साह से लगे हुए थे। लॉकडाउन के कारण घर लौटे मज़दूरों के लिए भी आद्रा नक्षत्र की अच्छी बारिश एक बढियाँ अवसर लेकर आयी थी और किसान इस अवसर का भरपूर लाभ उठा लेना चाहते थे। कई सालों के बाद बिहार के किसानों को जून महीने में अच्छी बारिश दिखी थी। बारिश का पानी रहते ही खेतों से धान का बिचड़ा उखाड़कर रोप लिया जाए ताकि मंहगी डीज़ल पर भाड़े का पम्पसेट चलाने की नौबत ना आए और जल्दी रोपनी करके पंजाब, हरियाणा या दूसरे शहरों की राह दुबारा पकड़ ली जाय, यही सब कुछ रहा होगा उन किसानों या मज़दूरों के मन में। पर होना कुछ और ही था। कुल 43 लोगों के ऊपर बिजली तब गिरी जब वे अपने खेतों में काम कर रहे थे। खेतों में काम करते हुए मरने वालों में 3 बच्चे (18 वर्ष से काम उम्र) भी थे।
6. कुल 19 बच्चे जो वज्रपात के कारण मारे गए, उनमें से 7 की मृत्यु की परिस्थिति के बारे में मीडिया की रिपोर्टिंग नहीं थी। हालांकि शेष 12 मृत बच्चों में पाँच (05) बच्चे मवेशी चराते हुए, 2 बच्चे धान के खेतों में काम करते हुए और 2 पशुओं के लिए चारा लाने के क्रम में मारे गए। पूर्वी चम्पारण में एक पंद्रह साल की बच्ची खेत में काम कर रहे अपने पिता को छाता देने जा रही थी और रास्ते में बिजली गिरने से मारी गयी। 12 साल की सोनम कटे हुए मकई के खेतों से अपने घर में जलावन के लिए बची हुई खूंटियां उखाड़कर लाने गयी थी। उसकी मौत वहीं हो गयी। एक लड़का अंकित बाहर खेलते हुए मारा गया।
7. समुदाय के दृष्टिकोण से अगर हम ये आंकड़े देखते हैं तो इस वज्रपात के शिकार हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही परिवार हुए हैं। कुल 155 प्रभावित (100 मृतक और 55 घायल दोनों को मिलाकर) लोगों में 127 लोगों के नाम उपलब्ध थे। नामों के विश्लेषण से पता चलता है कि 127 लोगों में 101 हिन्दू और शेष 26 मुसलमान हैं। यह आंकड़ा यहाँ सिर्फ इतना बताने के लिए कि आपदाएं धर्म या मज़हब नहीं देखती।
8. परन्तु भले ही आपदाएं धर्म या जाति देखकर शिकार नहीं बनाती, पर जो मारे गए या घायल हुए उनमें से अधिकतर खेतिहर मज़दूर या किसान थे। किसांनों में भी अधिकतर वैसे किसान जो बटाई पर लेकर खेती करते हैं। बटाई करने वाले और मज़दूरी करने वाले अधिकतर हिन्दुओं में पिछड़ी जातियों एवं अनुसूचित जाति/दलित सदस्य हैं। जहाँ 127 में 80 मृत एवं घायल दलित एवं पिछड़ी जातियों से थे (मृत- 56, घायल- 24), वहीं 25 जून को ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत- इन तीनों जातियों से कुल 08 (मृतक- 07, घायल- 01) व्यक्ति वज्रपात के शिकार हुए। जाति-वार आंकड़ा हमारे गांवों में खेती-किसानी में मालिक-उत्पादनकर्ता के संबंधो और उसकी सामाजिक संरचना की सम्पुष्टि ही करता है।
9. खेती-किसानी में जो जोख़िम है उसे अब तक हम केवल फ़सलों के सूखने या बाढ़ में दह जाने या फ़सल उत्पादों के सही दाम ना मिलने से जो जोड़ कर देख रहे हैं। पर अब हमें उसमें जान जाने का जोखिम भी जोड़ देना पड़ेगा। यानि अब केवल फ़सल बीमा (crop insurance) ही नहीं बल्कि किसानों-मज़दूरों के जीवन बीमा (life insurance) की भी बात होनी चाहिए।
10. पूर्वी चम्पारण के रहने वाले 44 साल के शमसुल मियां अपने पीछे अपनी बीवी और पाँच बेटे-दो बेटियाँ छोड़ गए हैं। इसी जिले के भगल साह (42 साल) के मृत्यु के बाद उनकी बीवी और पांच संतानों (तीन बेटियाँ और दो बेटे) का सहारा छिन गया है। बांका जिला के 28 साल के दिलीप यादव का परिवार भी ऐसे ही उजड़ गया है – बीवी और तीन साल की बेटी। भागलपुर में 30 साल के हिंदरी यादव की भी यही दास्तां है। पीछे बीवी और तीन साल की बेटी रह गयी है बेसहारा। मधुबनी में सोतीलाल मंडल और अड़हुलिया देवी दोनों पति-पत्नी खेत में मारे गए। इनके बच्चे अनाथ ही हो गए। मधुबनी जिले में ही और एक घटना में 65 साल के भूषण यादव के साथ-साथ उनका बेटा संतोष यादव (28 साल) और संतोष की पत्नी शुभकला देवी (26 साल) मारी गयी। अब घर में संतोष-शुभकला के दो बच्चे बचे हैं, अनाथ- 5 साल का बेटा और 4 साल की बेटी। पश्चिमी चम्पारण के विजय मिश्र (50 साल) अपने पीछे पत्नी और दो बेटे छोड़ गए हैं। मृतकों में इसी जिले के दीपू राम (30 साल) भी हैं, जो इलाहबाद में मिस्त्री का काम करते थे और लॉकडाउन में घर आ गए थे। खेतों में मजदूरी कर अपने घर का ख़र्च उठाने की कोशिश कर रहे थे, पर क्या पता था कि खेत में ही वो मारे जाएंगे। वज्र उनपर नहीं बल्कि उनकी पत्नी, चार बेटियों और एक बेटे पर आ गिरा है। यही कुछ बुरी ख़बरें सुपौल जिले से भी मिली, जहाँ पति-पत्नी- गुलाब मंडल और पूनम देवी दोनों खेत में काम करते मारे गए। परिवार में बूढ़ी दादी के सहारे एक 4 साल का बेटा और 1.5 साल की एक बेटी रह गयी है। ऐसे परिवारों के लिए 4 लाख का सरकारी मुआवज़ा पर्याप्त नहीं होगा। ऐसे परिवार जिनमें महिलायें, बच्चे और बूढ़े मां-बाप बच गए हैं, उनके लिए अलग नीति होनी चाहिए। क्योंकि यहाँ जोख़िम का स्वरुप अत्यधिक गंभीर है। सामाजिक सुरक्षा, बाल विकास और संरक्षण तथा साथ ही वृद्धजनों के लिए जो भी योजनाएं हैं वे सभी के सभी इन परिवारों को तत्काल मिले ऐसा प्रबंध होना ही चाहिए।
11. मनुष्य के जान की क्षति के अलावा लोगों के पशु भी काफ़ी संख्या में मारे गए हैं। एक चरवाहे की 16 बकरियाँ मारी गयीं, पर अख़बार के मुताबिक़ सिर्फ दूध देने वाले पशुओं की मृत्यु पर ही मुआवज़ा मिलने का नियम है। अगर ऐसा नियम है तो फिर यह नियम क्यों है यह समझ में नहीं। लोगों के बैल, खस्सी, सुवर वग़ैरह मारे जाएँ और मुआवज़ा अगर नहीं मिले, तो सरकार को ये नियम तत्काल बदलने चाहिए।
नोट:- यह रिपोर्ट तैयार करने तक 8 जिलों में 1 जून को हुए वज्रपात से और 26 लोगों की मौतें दर्ज की गई हैं। स्रोत:- आपदा प्रबंधन विभाग की वेबसाइट।
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