पिछले 25 सालों से जीत रहे नंदकिशोर यादव क्या फिर पटना साहिब विधानसभा सीट पर जीत का परचम फहराएंगे?
Balendushekhar Mangalmurty
पटना साहिब विधानसभा सीट पर बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दूसरे चरण में यानि 3 नवम्बर को मतदान होना है. इस सीट से 1995 से लगातार भाजपा नेता नन्द किशोर यादव जीतते आये हैं. 2015 में उन्हें राजद, कांग्रेस और जदयू के महागठबंधन के उम्मीदवार संतोष मेहता ( राजद) की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा था, पर फिर भी वे जीत हासिल करने में सफल रहे. एक कठिन जीत. तब नंद किशोर यादव ने राजद के संतोष मेहता को को 2,792 वोटों से हराया था. यादव को 88,108 वोट मिले थे जबकि मेहता को 85,316 वोट मिले थे.बीजेपी को कुल 46.89 फीसदी जबकि राजद को 45.40 फीसदी वोट मिले थे.
इस बार भाजपा नेता नंद किशोर यादव की सीधी टक्कर कांग्रेसी उम्मीदवार प्रवीण कुशवाहा के साथ है. हालाँकि मैदान में रालोसपा से जगदीश प्रसाद वर्मा, और जाप से महमूद कुरैशी भी हैं.
पटना साहिब विधानसभा में कुल 3.51 लाख वोटर हैं जिसमें 1.84 लाख यानि 52.4 प्रतिशत पुरुष और 1.67 लाख यानि 47.5 प्रतिशत महिला वोटर हैं. भाजपा ने इस सीट को कुछ इस तरह से साध रखा है कि पटना साहिब भाजपा का अभेद्य किला हो गया है. इसकी वजह इस विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरण में देखा जा सकता है. इस सीट पर वैश्य, यादव, कोईरी वोटर्स सबसे अधिक संख्या में हैं, जबकि मुस्लिम, कुर्मी वोटर्स भी अच्छी संख्या में हैं.
इस सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यादव और कोइरी वोटर अहम भूमिका में बताए जा रहे हैं। जबकि मुस्लिम मतदाता भी ठीक-ठीक संख्या में हैं। इस सीट पर वैश्य समाज का दबदबा रहता है, जिनके करीब 80 हजार के करीब वोटर हैं. उसके बाद कोइरी, कुर्मी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी बड़ी संख्या में हैं. जबकि यादव जाति के वोटर पचास हजार से अधिक हैं. कोयरी वोटर्स की संख्या करीब 48 हजार और कुर्मी वोटर्स की संख्या 16 हजार के करीब है. करीब 43 हजार वोट मुस्लिम वोटर्स के हैं. ऐसे में भाजपा की ओर से यहां नंद किशोर यादव को मौका मिलता रहा है और वो 1995 से हर बार जीत हासिल करने में कामयाब रहे हैं. हालाँकि इस शहरी विधानसभा क्षेत्र में समस्यायों की अम्बार है.
2008 में हुए परिसीमन के बाद पटना साहिब विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी. इससे पहले इस सीट का ज्यादातर हिस्सा पटना पूर्वी में आता था.
राज्य के पथ निर्माण मंत्री होने के बावजूद नंदकिशोर यादव के चुनावी इलाके में जल जमाव और सड़क जाम आम समस्या है. पिछले साल पटना में हुए जल जमाव में इनके इलाके में लोगों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी थी. कारोबारियों के केंद्र इस विधानसभा क्षेत्र में ही सिक्खों का प्रसिद्ध पटना साहिब गुरुद्वारा भी है, जहाँ सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह का जन्म हुआ था. प्रकाश पर्व के समय दुनिया भर से सिक्ख पटना आये थे. बिहार सरकार ने प्रकाश पर्व की समुचित व्यवस्था करके काफी वाहवाही भी लूटी थी.
1957 में पहली बार चुनाव हुआ और शुरुआती दो चुनाव कांग्रेस के खाते में रहे. लेकिन उसके बाद से यहां जनसंघ ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी. फिर कांग्रेस ने वापसी की, बीच में जनता पार्टी भी आई. लेकिन 1995 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की और तब से अबतक ये सीट भाजपा के अधिकार में है.
आरएसएस से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले नंदकिशोर यादव भाजपा के दिग्गज नेता हैं. राज्य की बहुसंख्यक यादव जाति से आने के चलते भाजपा ने इन्हे लालू यादव के राजनीतिक कद को चुनौती देने के लिए प्रोजेक्ट करना शुरू किया. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी बनाये गए,हालाँकि अपने काम में असफल रहे. लम्बे राजनीतिक कैरियर के बावजूद पुरे बिहार में यादवों के बीच पकड़ बनाने में असफल रहे, हालाँकि सड़क निर्माण मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय संभल चुके हैं.
उन्होंने पटना नगर निगम में पार्षद के चुनाव से चुनावी राजनीति की शुरुआत की थी. बाद में वो पटना के डिप्टी मेयर भी रहे. 1995 में पहली बार पटना पूर्वी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 1998 से 2003 तक वो बिहार बीजेपी के प्रमुख रहे हैं.
पटना नगर निगम के कॉर्पोरेटर से शुरू करते हुए बिहार सरकार में मंत्री तक का लम्बा सफर तय करने वाले नन्द किशोर यादव को कांग्रेसी उम्मीदवार प्रवीण कुशवाहा कितनी कठिन चुनौती दे पाते हैं, देखने वाली बात होगी.
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